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छूँछे घड़े / केदारनाथ अग्रवाल

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|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
|संग्रह=
}}
 
आए
और चले गए
सुखशाई दिन
छूकर मुझे
देकर दुखदाई
अंधकार
भरमार
 
 
 
 
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