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|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
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जाईं तऽ जाईं हम कहाँ आगे
दूर ले बा धुआँ-धुआँ आगे

रोज पीछा करीले हम, बाकिर
रोज बढ़ जाला आसमाँ आगे

के तरे चैन से रही केहू
हर कदम पर बा इम्तहाँ आगे

एक मुद्दत से चल रहल बानी
पाँव के तहरे बा निशाँ आगे

मन त बहुते भइल जे कह दीं हम
पर कहाँ खुल सकल जुबाँ आगे

टूट जाला अगर हिया 'भावुक'
कुछ ना लउके इहाँ-उहाँ आगे

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