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{{KKRachna
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
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तुम जलाकर दिये, मुँह छुपाते रहे, जगमगाती रही कल्पना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
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