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<poem>बचपन आँगन में लिखे थे उसनेकुछ अपशब्ददीवार की छाती पर.के सहारेभरा पड़ा खड़ा हैगेहूँ का थैलाकहते जिसे हमअपनी भाषा में-पीसणा।
अब कई गुणा होकरबड़े ही जतन से पसर गए हैं बरसों बादपत्नी ने जिसेछाज में छटक-फटककिया साफबीन दियाकंकर-कचरा साराउड़ा दी खेह-खपरियाहवा के संग।
पोत देना चाहता है वह उन्हेंअब जाएगाएक आटा-चक्की तकबड़ी ही झटके मेंशान सेसवार होएक साथ.मेरे मोढ़े पर।
बेटी जो इसी गली सेस्कूल जाने-आने लगी है. (मोढ़े=कंधे)
</poem>
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