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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=}}[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>आँगन में
दीवार के सहारे
भरा पड़ा
कहते जिसे हम
अपनी भाषा में-
पीसणा।पीसणा ।
बड़े ही जतन से
पत्नी ने जिसे
छाज में छटक-फटक
किया साफसाफ़
बीन दिया
कंकर-कचरा सारा
उड़ा दी खेह-खपरिया
हवा के संग।संग ।
अब जाएगा
बड़ी ही शान से
सवार हो
मेरे मोढ़े पर।   (मोढ़े=<ref>कंधे)</ref> पर ।
</poem>
{{KKMeaning}}
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