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{{KKRachna|रचनाकार: [[=रघुवीर सहाय]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह =कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ / रघुवीर सहाय]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}{{KKCatKavita}}<poem>
मरने से पहले घर एक बार जाने की आकांक्षा
साहित्य के अंदर कितना पिटा हुआ वाक्य बन जाती है ।
अरे भले आदमी, अध्यापक,
लेखक की यह जीवन भर की कमाई थी
करुणा से स्वर कंपाय तुमने बहाय दी ।
('कुछ पते कुछ चिट्ठियां' नामक कविता-संग्रह से )</poem>