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Kavita Kosh से
मुझे कहीं कुछ ना सुहाय रे, बालम बिना,
मोहे पलक कल्प सम लागे रे, कहूँ किसे ?
सखी रे मेरी ! बालमजी घर ना आये आए जी ।
पौष मास पियुजी परदेस रे, सखी मेरे,
मैं तो अकेली कैसे रहूँ रे इस ऋत में,
देखो खिलता मेरा जोबन जलाए वेश रे
सखी रे मेरी ! बालमजी घर ना आये आए जी ।
माघ में मन मिलने को अकुलाय रे अलबेले से