Changes

एक बुलबुला / कुमार सुरेश

85 bytes added, 19:07, 6 नवम्बर 2010
[[एक बुलबुला]]{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita‎}}<poem>झील कि सतह पर उपजा और फूला
उसने देखा पानी कि विशाल चादर को
खुले नीले आसमान को
आसमान में उड़ते पक्षियों को
और सोचा
अहा! मैं इन सब से अलग हूँ!
मैं ज्यादा गोल-गोल और सुन्दर
ज्यादा ज़्यादा ताज़ा ज्यादा ज़्यादा युवा हूँ
पानी कि चादर अधिक ठंडी है
आकाश ज्यादा ज़्यादा ही ऊपर है
और मछलियाँ सब बुद्धू हैं
दूसरे बुलबुलों को देखकर बोला
सूरज से सिकुड़ने से बचाने कि प्रार्थना करने लगा
सूरज खामोश ख़ामोश रहा और तपता रहा
बुलबुला यह सोचते हुए फूटा
कि उसके जैसा बुलबुला
कोई हुआ न होगा
इतनी देर में झील पर हजारों हज़ारों नए ताज़े बुलबुले
बन चुके थे
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,677
edits