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|रचनाकार=रमेश तैलंग
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<poem>
महाश्वेवता
गल्प नहीं लिखतीं।लिखतीं ।
महाश्वेता रचती हैं
आदिम समाज की करुणा का महासंगीत।महासंगीत ।
वृक्षों की,
वनचरों की,
लोक की चिंताओं का अलापती हैं राग।राग ।
महाश्वेवता की अनूभुतियांअनुभूतियाँ
जब ग्रहण करती हैं आकार
वृक्षों का कंपन,
लोक का वंदन
सब कुछ समाहित होता चलता है
उनकी रचनाओं में।में ।
महाश्वेता नहीं बांचती बाँचती अपनी प्रशस्तियों
या अपने दुःखों के अतिरंजित अध्याय,
वे घूमती हैं अरण्यों के बीच...
जगाती हैं प्रतिरोध की शक्ति
देती हैं आर्त्तजनों को आश्रय
घोर हताशा के क्षणों में।में ।
महाश्वेता
परंपराओं से,
पुराकथाओं से।से ।
द्रोपदी मझेन,दूलन गंजू,
नहीं हैं महाश्वेता की कल्पना के पात्र,
हाड-मांस वाले जीते जागे चरित्र हैं वे
इसी चराचर जगत के।के ।
महाश्वेता का लिखा,