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|रचनाकार= रमा द्विवेदी
}}
<poem>रेत के समन्दर सी है यह ज़िन्दगी,<br>तूफ़ां अगर आ जाए बिखर जाए ज़िन्दगी।<br><br>
अश्रु के झरने ने समन्दर बना दिया,<br>सागर किनारे प्यासी ही रह जाए ज़िन्दगी।<br><br>
जिन बेटियों को जन्म से पहले मिटा दिया<br>,उन बेटियों को बार-बार लाए ज़िन्दगी।<br><br>
पैरों की धूल मानकर इनको न रौंदना,<br>गिर जाए अगर आँख में रुलाए ज़िन्दगी।<br><br>
चाहे बना लो रेत के कितने घरौंदे तुम,<br>वक़्त के उबाल में ढ़ह जाए ज़िन्दगी।<br><br>
जिनका वजूद रेत के तले दबा दिया,<br>उनको ही चट्टान बनाए यह ज़िन्दगी।<br><br/poem>
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