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चक्की पर गेहूं लिए खड़ा / bharat bhusan
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16:29, 10 नवम्बर 2010
<poem>चक्की पर गेहूं लिए खड़ा मैं सोच रहा उखड़ा उखड़ा
क्यों दो पाटो वाली साखी बाबा कबीर को रुला गई
लेखनी मिली थी गीतव्रता प्रार्थना
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पत्र लिखते बीती
जर्जर उदासियों के कपड़े थक गई हँसी सीती-सीती
हर चाह देर में सोकर भी दिन से पहले कुलमुला गई
Kumar anil
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