|संग्रह=कनुप्रिया / धर्मवीर भारती
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क्या तुमने उस वेला मुझे बुलाया था कनु ?
लो, मैं सब छोड़-छाड़ कर आ गयी !
क्या तुमने उस वेला मुझे बुलाया था कनु?<br>इसी लिए तबलो, मैं सब छोड़-छाड़ तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी,इसी लिए मैंने अस्वीकार कर आ गयी!<br><br>दिया थातुम्हारे गोलोक काकालावधिहीन रास,
इसी लिए तब<br>मैं तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी,<br>इसी लिए मैंने अस्वीकार कर दिया क्योंकि मुझे फिर आना था<br>तुम्हारे गोलोक का<br>कालावधिहीन रास,<br><br>!
क्योंकि तुमने मुझे फिर आना पुकारा था!<br><br>नमैं आ गई हूँ कनु ।
तुमने मुझे पुकारा था न<br>और जन्मांतरों की अनन्त पगडण्डी के मैं आ गई कठिनतम मोड़ पर खड़ी होकरतुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ कनु।<br><br>।कि, इस बार इतिहास बनाते समयतुम अकेले ना छूट जाओ !
और जन्मांतरों की अनन्त पगडण्डी के<br>सुनो मेरे प्यार !कठिनतम मोड़ पर खड़ी होकर<br>प्रगाढ़ केलि-क्षणों में अपनी अंतरंगतुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ।<br>सखी को तुमने बाँहों में गूँथाकि, इस बार पर उसे इतिहास बनाते समय<br>तुम अकेले ना छूट जाओ!<br><br>में गूँथने से हिचक क्यों गए प्रभु ?
सुनो बिना मेरे प्यार!<br>कोई भी अर्थ कैसे निकल पाताप्रगाढ़ केलिक्षणों में अपनी अंतरंग<br>तुम्हारे इतिहास कासखी को तुमने बाँहों में गूँथा<br>शब्द, शब्द, शब्द...पर उसे इतिहास में गूँथने से हिचक क्यों गए प्रभु?<br><br>राधा के बिनासबरक्त के प्यासेअर्थहीन शब्द !
बिना सुनो मेरे कोई भी अर्थ कैसे निकल पाता<br>प्यार !तुम्हारे इतिहास का<br>शब्दतुम्हें मेरी ज़रूरत थी न, शब्द, शब्द…<br>लो मैं सब छोड़कर आ गई हूँराधा के बिना<br>ताकि कोई यह न कहेसब<br>कि तुम्हारी अंतरंग केलि-सखीरक्त केवल तुम्हारे साँवरे तन के प्यासे<br>नशीले संगीत कीअर्थहीन शब्द!<br><br>लय बन तक रह गई....
सुनो मेरे प्यार!<br>तुम्हें मेरी ज़रूरत थी न, लो मैं सब छोड़कर आ गई हूँ<br>प्रिय !ताकि कोई यह न कहे<br>मेरी वेणी में अग्निपुष्प गूँथने वालीकि तुम्हारी अंतरंग केलिसखी<br>केवल तुम्हारे साँवरे तन के नशीले संगीत की<br>उँगलियाँलय बन तक रह गई……<br><br>अब इतिहास में अर्थ क्यों नहीं गूँथती ?
मैं आ गई हूँ प्रियतुमने मुझे पुकारा था न!<br>मेरी वेणी में अग्निपुष्प गूँथने वाली<br>तुम्हारी उँगलियाँ<br>अब इतिहास में अर्थ क्यों नहीं गूँथती?<br><br>
तुमने मुझे पुकारा था न!<br><br> मैं पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर<br>तुम्हारी प्रतीक्षा में<br>अडिग खड़ी हूँ, कनु मेरे!</poem>