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उस दिन / शैलेन्द्र

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{{KKRachna|रचनाकार: [[=शैलेन्द्र]][[Category:कविताएँ]]|अनुवादक=[[Category:|संग्रह=न्यौता और चुनौती / शैलेन्द्र]]}}~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
साध हो चुकी पूरी !
 
जिस दिन तुमने सरल स्नेह भर
 
मेरी ओर निहारा;
 
विहंस बहा दी तपते मरुथल में
 चंचल रस धारा! 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 साध हो चुकी पूरी! 
जिस दिन अरुण अधरों से
 तुमने हरी व्यथाएंव्यथाएँ
कर दीं प्रीत-गीत में परिणित
 मेरी करुण कथाएंकथाएँ
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 साध हो चुकी पूरी! 
जिस दिन तुमने बाहों में भर
 
तन का ताप मिटाया;
 प्राण कर दिए पुण्य--सफल कर दी मिट्टी की काया! 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी !
साध हो चुकी पूरी!   '''1945 में रचित</poem>
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