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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>पीपल के पत्तों पर फिसल रही चांदनीचाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चांदनीचाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर--
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर
नाच रही, कूद रही, उछल रही चांदनीचाँदनी
वो देखो, सामने
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चांदनी
(१९७६ में रचित,'खिचड़ी विप्लव देखा हमने' नामक कविता-संग्रह से)</poem>