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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=नये पत्ते / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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<poem>
राजे ने अपनी रखवाली की;
किला बनकर बनाकर रहा;बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं।रखीं ।चापलूस कितने सामन्त आए।आए ।मतलब की लकड़ी पकड़े हुए।हुए ।
कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बांधे हुए।बाँधे हुए ।
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले।खेले ।जनता पर जादू चला राजे के समाज का।का ।लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं।हुईं ।धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ।हुआ ।लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर।पर ।ख़ून की नदी बही।बही ।आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं।लीं ।आँख खुली-- राजे ने अपनी रखवाली की।की ।
</poem>
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