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सफ़र / संजय मिश्रा 'शौक'

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सफर
जीवन रथ है दो पहियों का
दोनों पहिये साथ रहें तो
सफर बहुत आसां होता है
हवस का कीचड़
इन पहियों को
सम्त बदल देता है अक्सर
सम्त बदल जाने से ही
रफ़्तार शिकन खाती है पल-पल
और डगर पर
चलना मुश्किल हो जाता है
ये मुश्किल
आसान अगर करना है तुमको
हवस के इस कीचड़ से
दोनों पहियों को तुम पाक करो
और
सफर का सारा मजा उठाओ
नियत समय पर मंजिल पाओ </poem>