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13:33, 21 नवम्बर 2010 <poem>'''उस समय भी''' / रमानाथ अवस्थी
जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ
जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ
जब हमारे आँसूओं के मेघ टूट जाएँ
उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए,
टूटे पंख से नदी की धार ने कहा ।
जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो
जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो
जब भूखे आदमियों औ ' कुत्तों में द्वन्द हो
उस समय भी बुझना नहीं जलना चाहिए,
बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा । </poem>