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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी}}{{KKCatKavita‎}}{{KKCatGeet}}<poem>सौ बातों की एक बात है । 
सौ बातों की एक बात है ।
रोज रोज़ सवेरे रवि आता है
दुनिया को दिन दे जाता है
लेकिन जब तम इसे निगलता
अनगिन फूल नित्य खिलते हैं
हम इनसे हँस -हँस मिलते हैं
लेकिन जब ये मुरझाते हैं
तब हम इन तक कब जाते हैं
जीवन इस सबके ऊपर है
सबके जीवन में क्रंदन है
लेकिन अपना -अपना मन है
सौ बातो की एक बात है । </poem>
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