भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ऐसी फ़सलों को उगाने की ज़रूरत क्या है
जो पनपने के लिए ख़ून का दरिया माँगेमाँगें
सिर्फ़ ख़ुशियों में ही शामिल है ज़माना सारा
ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आख़र
लोग हर जश्न पे मेहमान मेहमान से पैसा माँगेमाँगें
कितना लाज़म है मुहब्बत में सलीका ऐ‘अज़ीज़’
ये ग़ज़ल जैसा कोई नर्म-सा लहज़ा माँगे
</poem>