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|संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा
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{{KKCatKavita‎}}<poem> इस कुहरा डूबी, अंधियारी गली में <br>भाग्य ने, <br>मुझे जन्म दिया है <br>जैसे कोई भटकी हुई चील <br>हड्डी का टुकड़ा, खाई में छोड़ जाए। <br> <br>जाए ।
इसी गली ने मुझको पोषा है, <br>मोक्कड़ पर <br>उग आए <br>मुझ जैसे बौने को, <br>सूर्यपुत्र कहकर आशीषा है। <br>है ।मैंने इस ममता को, <br>अनुक्षण स्वीकारा है। <br>है । मेरी जड़, <br>तुझमें है ओ माँ!! तुझ में है। <br> <br>है ।
रोप नहीं पाएगा <br>कोई भी मुझे किसी गमले में, <br>मैं तेरी प्रतिभा हूँ। <br> <br>हूँ ।
घबरा मत कुहरे से। <br>से ।सूरज के सात चक्रवर्ती अश्वों को कुछ <br>असुरों ने <br>घेरा है। <br>है । इसीलिए इतना अंधेरा है। <br>है । मैं तेरा बौना शिशु <br>मुक्त कर सकूँ शायद <br>सूरज को। <br>को । घबरा मत! <br> <br>
रोप नहीं पाएगा कोई भी मुझे <br>किसी गमले में। <br>में । मैं तेरी प्रतिभा हूँ।हूँ ।</poem>
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