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<poem>
-यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गयी गई
बगल से
::::::गोली दनाक से। से ।
राहजनी हो या क्रान्ति ? जो भी हो, मुझको
गुज़रना ही रहा है
::::::::शेष। शेष ।
देश
:::::::नक्शे में
कच्छ हो या चीन
:::::::तब तक
दूसरी गोली दनाक से। से ।
हद हो गयी, मुझको कहना ही पड़ेगा, हद कहीं नहीं
चले आओ अंदर
खुदबुदाते हुए प्रेम, बिलबिलाती हुई इच्छा, हिनहिनाते
हुए क्रोध को मरोड़ दो। क्या होगा ? छूँछा
होता हूँ हर बार ताकि और भी मवाद हो। हो ।
दाद हो खुजली हो, खाज हो हरेक के लिए
है
:::::::मुफीद,
आजमाइए, मथुरा का सूरदास मलहम। मलहम ।
क्या कहा ? सांडे का तेल ? नहीं, नहीं,
कामातुर स्त्रियाँ, लौट जायें, वामाएँ,
भाव दूना हो गया है सूना
लगता है लस्सा ही
:::::::नहीं रहा। रहा ।
क्या कहा ? नहीं, नहीं मथुरा का सूरदास मलहम
मुफीद है
::::सब की मतदान पेटियों में
::::कम होगा एक-एक वोट,
मुझको मंजूर नहीं किसी की शर्त। शर्त ।
मुझ को गुज़रना है भरी हुई भीड़ से, मक्खियों के
आँखें तरेर कर
घेर कर
कहाँ लिये जाते हो मुझ को मेरे विरुद्ध?
छोड़ दो, छोड़ो, छोड़ो वरना ! वरना के आगे
कुछ नहीं, बस स्टॉप है जिसका
मुँह
किसी की तरफ नहीं। नहीं ।
मुझे भी बदल दो बस स्टॉप में
छोड़
देर वैसे भी हो चुकी, चौसर की तरह
बिछे
नक्शे पर बैठ गया कौवों का प्रसंग। प्रसंग । पृथ्वी का
हिसाब
हो रहा है--
और
कुछ अपने आपको,
धन्यवाद!
तोड़ता है यथास्थिति, मनसब नहीं बल्कि
जिसे
ठोंकता है दिन-भर
चुंगी का दरोगा, भैंसों का दलाल। दलाल ।
देखता है काल या कि देखता भी नहीं है?
हे ईश्वर ! मुझको क्षमा करना, निर्णय
कल लूँगा, जब
निर्णय हो चुका होगा।होगा ।
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