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जीवित हो उठता हूँ मैं
जब आती है पैसेन्जर
मुसाफ़िरो मुसाफ़िरों का कोलाहल
चढ़ते-उतरते यात्री
फिर आती है
मेरी सुध नहीं ली
रायपुर-दुर्ग की
गाड़ियां गाड़ियाँ भी मैं
ना देख सका
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