भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
 विजन-वन-वल्लरी पर<br>सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न--<br>अमल- कोमल -तनु तरुणी--जुही की कली,<br>दृग बन्द किये, शिथिल--पत्रांक में,<br>वासन्ती निशा थी;<br>विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़<br>किसी दूर देश में था पवन<br>जिसे कहते हैं मलयानिल।<br>मलयानिल ।आयी याद बिछुड़न से मिलन की वह मधुर बात,<br>आयी याद चाँदनी की धुली हुई आधी रात,<br>आयी याद कान्ता की कमनीय गात,<br>फिर क्या ? पवन <br>उपवन-सर-सरित गहन -गिरि-कानन<br>कुञ्ज-लता-पुञ्जों को पार कर<br>पहुँचा जहाँ उसन उसने की केलि<br>कली खिली साथ।<br>साथ ।सोती थी,<br>जाने कहो कैसे प्रिय-आगमन वह ?<br>नायक ने चूमे कपोल,<br>डोल उठी वल्लरी की लड़ी जैसे हिंडोल।<br>हिंडोल ।इस पर भी जागी नहीं,<br>चूक-क्षमा माँगी नहीं,<br>निद्रालस बंकिम विशाल नेत्र मूँदे रही--<br>किंवा मतवाली थी यौवन की मदिरा पिये,<br>कौन कहे ?<br>निर्दय उस नायक ने <br>निपट निठुराई की<br>कि झोंकों की झाड़ियों से<br>सुन्दर सुकुमार देह सारी झकझोर डाली,<br>मसल दिये गोरे कपोल गोल;<br>चौंक पड़ी युवती--<br>चकित चितवन निज चारों ओर फेर,<br>हेर प्यारे को सेज-पास,<br>नम्र मुख हँसी-खिली,<br>खेल रंग, प्यारे संग।<br>संग ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,667
edits