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13:06, 24 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मनीष मिश्र
|संग्रह=
}}
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<poem>
जब पिता करेंगे अपेक्षा
और माँ प्रतीक्षा,
जब बहनें बुनेंगी स्वेटर
अपने सपनों को उधेड़कर,
जब शिथिल पड़ जायेंगे
हवन और समिधा में गुँथे संस्कार,
जब गलियारे में सोये पड़े होंगे ईश्वर
गर्मी और मच्छरों से परे,
जब उकता जायेंगे हम अपने होने के बोझ
कुतरे हुये रिश्तों,
या किसी कामातुर बारिश से।
तब किसी आश्चर्य की तरह
कविता बचायेगी हमें।
</poem>