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गर्भस्थ शिशु से / मनीष मिश्र

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गर्भ की अँधेरी कंदरा से
कैसे देख सकोगे तुम
कि एक पुष्प ठिठका है खिलने की प्रतीक्षा में,
कि वृक्षों से उधार ली गयी है तु6हारे लिए लोरी,
कि किसी प्राचीन ग्रन्थ में छुपा है तु6हारा नाम,
कि सपनों को धकेलकर बनायी गयी है नन्ही जगह,
कि दीवारें आतुर हैं खोलने के लिए गवाक्ष
कि आकाश गाता है, अपनी बूँदों से
एक अनहद राग
तु6हारी प्रतीक्षा में।
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