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13:13, 24 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मनीष मिश्र
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<poem>
जब चुकने लगते हैं पिता
माँ हो जाती है प्रासंगिक।
माँ धीरे-धीरे हो जाती है
दादी या नानी।
वर्षों के अनुभवों के बावज़ूद
पिता रह जाते हैं
महज़ पिता।
</poem>