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दस दोहे (91-100) / चंद्रसिंह बिरकाली
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16:29, 1 दिसम्बर 2010
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म्हांनै इतरो मोकळो आंखडल्यां रो चोर।। 94।।
बादलियों, हम तुम से विनय करती है कि चंद्रमा की तनिक तिरछी सी कोर दिखा दो। उस आंखों के चोर का इतना सा दर्शनही हमें पर्याप्त होगा।
चांद छिपायो बाद्ळयां धरा गमायो धीर।
अनिल जनविजय
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