भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
339 bytes removed,
03:47, 29 नवम्बर 2010
|संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाडते परिवेश
}}
{{KKCatKavita}}<poem>दहकन का अहसास कराता, चंदन कितना बदल गया जिसके सिर पर धूप खडी हैमेरा चेहरा मुझे डराता, दरपन कितना बदल गया दुनियाँ उसकी बहुत बडी है।
आँखों ही आँखों मेंऊपर नीलाकाश परिन्दे, सूख गयी हरियाली अंतर्मन की;कौन करे विश्वास कि मेरा, सावन कितना बदल गया नीचे धरती बहुत पडी है।
पाँवों के नीचे से खिसक खिसक जाता सा बात बात यहाँ कहकहों की जमात में;मेरे तुलसी के बिरवे का, आँगन कितना बदल गया व्यथा कथा उखडी उखडी है।
भाग रहे जाले यहाँ कलाकृतियाँ हैं लोग मृत्यु के, पीछे पीछे बिना बुलाये;जिजीविषा से अलग-थलग यह, जीवन कितना बदल गया प्रतिभा यहाँ सिर्फ मकडी है।
प्रोत्साहन यहाँ सत्य के पक्षधरों की नयी दिशा में, देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ;दुर्जनता की पीठ ठोंकतासच्चाई पर नज़र कडी है। जिसने सोचा गहराई को, सज्जन कितना बदल गया उसके मस्तक कील गडी है। और कहाँ तक प्रगति करेगी,बस्ती यहाँ कहाँ पिछडी है?
----------
साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com के बस्तर के 'वरिष्ठतम साहित्यकार' की रचनाओं को अंतरजाल पर प्रस्तुत करने के प्रयास के अंतर्गत संग्रहित। </poem>