{{KKRachna
|रचनाकार=लाला जगदलपुरी
|संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाडते दहाड़ते परिवेश/ लाला जगदलपुरी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>दहकन का अहसास कराता, चंदन कितना बदल गया हैमेरा चेहरा मुझे डराता, दरपन कितना बदल गया है।है ।
आँखों ही आँखों में, सूख गयी गई हरियाली अंतर्मन की;कौन करे विश्वास कि मेरा, सावन कितना बदल गया है।है ।
पाँवों के नीचे से खिसक -खिसक जाता सा बात -बात में;मेरे तुलसी के बिरवे का, आँगन कितना बदल गया है।है ।
भाग रहे हैं लोग मृत्यु के, पीछे -पीछे बिना बुलायेबुलाए;जिजीविषा से अलग-थलग यह, जीवन कितना बदल गया है। प्रोत्साहन की नयी दिशा में, देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ;दुर्जनता की पीठ ठोंकता, सज्जन कितना बदल गया है।है ।
प्रोत्साहन की नई दिशा में, देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ;
दुर्जनता की पीठ ठोंकता, सज्जन कितना बदल गया है ।
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साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com के बस्तर के 'वरिष्ठतम साहित्यकार' की रचनाओं को अंतरजाल पर प्रस्तुत करने के प्रयास के अंतर्गत संग्रहित। </poem>