'''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] से'''<br><br>
आँसुओं के देश में!<br>
जो कहा रूक-रूक पवन ने<br>
जो सुना झुक-झुक गगन ने,<br>
साँझ जो लिखती अधूरा,<br>
प्रात रँग पाता न पूरा,<br>
आँक डाला लह दृगों ने एक सजल निमेष में!<br><br>
अतल सागर में जली जो,<br>
मुक्त झंझा पर चली जो,<br>
जो गरजती मेघ-स्वर में,<br>
जो कसकती तड़ित्-उर में,<br>
प्यास वह पानी हुई इस पुलक के उन्मेष में!<br><br>
दिश नहीं प्राचीर जिसको,<br>
पथ नहीं जंजीर जिसको<br>
द्वार हर क्षण को बनाता,<br>
सिहर आता बिखर जाता,<br>
स्वप्न वह हठकर बसा इस साँस के परदेश में!<br><br>
मरण का उत्सव है,<br>
गीत का उत्सव का अमर है,<br>
मुखर कण का संग मेला,<br>
पर चला पंथी अकेला,<br>
मिल गया गन्तव्य, पग को कंटकों के वेष में!<br><br>
यह बताया झर सुमन ने,<br>
वह सुनाया मूक तृण ने,<br>
वह कहा बेसुध पिकी ने,<br>
चिर पिपासित चातकी ने,<br>
सत्य जो दिव कह न पाया था अमिट संदेश में!<br><br>
खोज ही चिर प्राप्ति का वर,<br>
साधना ही सिद्धि सुन्दर,<br>
रुदन में कुख की कथा हे,<br>
विरह मिलने की प्रथा हे,<br>
शलभ जलकर दीप बन जाता निशा के शेष में!<br><br>
आँसुओं के देश में!<br><br>