जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।
झाड़ झूड़ कुछ नहीं अकेला, त्रण तृण तक न देता दिखलाई,
इक निदाध का दर्शन ऐसा, जीवन जैसे सुध बौराई,
जल विहीन पोखर का तलपट, बोलो ! कौन सीया करती है,
बर्राता हो मौसम, तब भी, मौनी साध रहा करती है,
जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।
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