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<poem>होठों को सच्चाई दे
बस इतनी अच्छाई दे

मेरा ही आसेब मुझे
घर में रोज़ दिखाई दे

ऐसी क्यों है ये दुनिया
यारब आज सफ़ाई दे

रिश्ते अगर बनाए हैं
रिश्तों को गहराई दे

ख़ुद से भी कुछ बात करूँ
इतनी तो तन्हाई दे

अगर कहीं है ईश्वर तू
मुझको कभी दिखाई दे</poem>
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