भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंधे / केदारनाथ अग्रवाल

3 bytes added, 17:08, 7 दिसम्बर 2010
क्योंकि
आप
बार-बार गढे गढ़े में गिरते हैं
समय के सूरज से
आँख मूँदे रहते हैं
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits