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विश्वासदे! / रामकृपाल गुप्ता
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वन का नीरव एकान्त अरी री कली
भला काँटो की डाली पर
मुसुकाती ही जाती क्यों पगली
सौरभ में निज उल्लास मिला
दो घूँट पिला दे साकी
जीवन जग का विश्वास
मुझे भी ता सिखला दे साकी
मैं व्यथाभरी साँसों में
दुख-द्वन्द्व निराशा-आशा के पाशों में
चिर अजर अमर जीवन के
चिर सुख चिर स्पन्दन के
मोती दो-चार पिरो लूँ
मन की कल्पना धरा के
अमृत में निर्बाध डूबो लूँ
तुझ-सा ही झंझा के पेंगों पर झूलूँ।