भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विश्वास दीजिए / राजेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कभी-न-कभी लड़खड़ा जाना एक हादसा है
और बैसाखियाँ थमा देना आपकी आदत।
लेकिन मुझे बैसाखियाँ नहीं
सहजता से चल पाने का
आत्मविश्वास चाहिए।
आप लड़खड़ाहट का संबंध
बैसाखियों से मत जोड़िए,
छिलने दो घुटने, टूटने दो टखने
मगर मुझे अंदर से मत तोड़िए।
तोड़ना ही है तो कायरता की मार तोड़िए
मन का आतंक, आँसुओं की धार तोड़िए।
खोखली बैसाखियाँ नहीं,
उम्मीदों का अनंत आकाश दीजिए,
आदमी को सहारा नहीं,
जूझने का विश्वास दीजिए।