विश्वास होवै तेॅ भगवान समीप छै / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
दुर्योधन केरोॅ कपट-द्यूत सेॅ सब हारी गेलोॅ छेलै
पाण्डव-द्रौपदी काम्य वन मेॅ आश्रय बनाय केॅ रही छेलै ।
दुर्याधन रोॅ हृदय मेॅ साँप लोटी रहलोॅ छेलै
पाण्डव केॅ समूल नष्ट करै लेॅ सोची रहलोॅ छेलै ।
खुदा नेॅ खास्ता दुर्वासा हुनका यहाँ ऐलोॅ छेलै
कुछ काल तक टिकलोॅ, सेवा सत्कार काफी करने छेलै ।
अतिथि सत्कारोॅ सेॅ अधिक संतुष्टि करने छेलै
दुर्वासा से वरदान मांगलकै हुनका प्रेरित करनें छेलै ।
कुटिल हृदय मेॅ आग धधकी रहलोॅ छेलै
पाण्डव केना केॅ नष्ट होतै, वहेॅ बात मनोॅ में सोचै छेलै ।
आपनें हमरा पर काफी अभीभूत होय रहलोॅ छियै
हम्में भीतर सें धन्य-धन्य होय रहलोॅ छियै ।
आपनें सेॅ गुजारिश करवै, बड़का भाय केॅ मौका दियै
आपने शिष्य समेत अतिथि बनी केॅ मौका दियै ।
द्रौपदी जबेॅ भोजन करलै, भाई सब भूखा नै रहै
दुर्वासा केॅ भोजन नै मिलतै, बौखलाय जैतै ।
भुखलोॅ दुर्वासा शाप देतै, पाण्डव सब्भेॅ नष्ट होय जैतै
है बात मनोॅ में सोची केॅ खुशी सेॅ झूमी रहलोॅ छेलै ।
युधिष्ठिर सूर्य नारायण केरोॅ स्तुति करी रहलोॅ छेलै
सूर्य नेॅ युधिष्ठिर केॅ एक बत्र्तन प्रदान करनें छेलै ।
कन्द-शाक रोॅ भोजन बनैला सेॅ अक्षय होय जाय छै
द्रौपदी जब तक भोजन नै करै सहस्रोॅ व्यक्ति जमावेॅ पारै छै ।
हिनकोॅ भोजन करला रोॅ बाद अतिथि केॅ भोजन मेॅ ग्रहण लागै छै
दुर्योधन नेॅ दुर्वासा सेॅ प्रार्थना करने छेलै ।
दुर्वासा हिनकोॅ प्रार्थना केॅ स्वीकार करने छेलै
सहस्रोॅ शिष्योॅ रोॅ साथ लै केॅ काम्यवन गेलोॅ छेलै ।
पाण्डव समेत नेॅ महर्षि केॅ प्रणाम करने छेलै
महर्षि बोललैैµ राजन आपने रोॅ जीवन मंगलमय होवै ।
मध्याह्न-संध्या रोॅ बाद भोजन रोॅ प्रबंध करवै
सरोवर मेॅ स्नान-ध्यान करै लेॅ चल्लोॅ गेलै ।
शिष्य समेत स्नान करै लेॅ चली देनें छेलै
दुर्वासा रोॅ प्रकोप सेॅ युधिष्ठिर रोॅ मुँहोॅ मेॅ लावा फूटै छेलै ।
द्रौपदी बोललै, भोजन करी चुकलियै हिनकोॅ होश उड़ै छेलै
भोजन नै मिलला पर शाप दै मेॅ देरी नै करतै ।
क्रोधित ऋषि रोॅ शाप सेॅ, हमरा सब्भेॅ केॅ भस्म करी देतै
द्रौपदी पति केॅ विकट देखी केॅ दुखी होय गेलै ।
द्रौपदी ढाढ़स दै केॅ कुटिया मेॅ स्मरण करै लेॅ गेलै
युधिष्ठिर मनोॅ मेॅ सोचै छै, यहाँ सेॅ तुरंत गेलोॅ छै ।
पल भरोॅ में यहाँ आना बड़ा कठिन छै
द्वारिकाधीश गरुड़ध्वज सेॅ बड़ी वेग सेॅ ऐलै ।
मयूर मुकुट चार श्वेत घोड़ा सें सुसज्जित रथ सेॅ उतरलै
भगवान केकरोॅ प्रणाम नै करलकै, तेजी सेॅ उतरलै ।
हुनियो केकरौ प्रणाम करै रोॅ मौका नै देनें छेलै
हम्में भूखोॅ सेॅ आतुर छियै कुछ खाना दोहोॅ ।
भूखोॅ सेॅ छटपटाय रहलोॅ छियै, पात्रोॅ मेॅ जे छै दोहोॅ
द्रौपदी बोललै ! हम्में जानै छेलियै तोहें जल्दी ऐभोॅ ।
भैया हमरोॅ मान-प्रतिष्ठा बचाय लेॅ तुरंत-फुरंत ऐभोॅ
हड़बड़ाय केॅ दुर्वासा केॅ भोजन कराना छै ।
श्याम केॅ अद्भुत भूख लागलोॅ छै, भोजन कराना छै
भैया हम्में भोजन करी चुकलोॅ छियै ।
सूर्य रोॅ देलोॅ बत्र्तन धोय चुकलोॅ छियै
कंगालिन बहनोॅ केॅ भोजन कहाँ नसीब छै ।
लीलामय केॅ भूख देखी केॅ द्रौपदी चकित छै
तोंय बकवास मत करोॅ, हो बत्र्तन लावोॅ ।
जे बत्र्तन में खाना बनै छौ, हौ बत्र्तन लावोॅ
श्याम घुमाय-फिराय केॅ बत्र्तन देखै लागलै ।
बत्र्तन मेॅ शाकोॅ रोॅ एक टुकड़ा लागलोॅ छेलै
आपनोॅ लाल-लाल अंगुली मेॅ लै केॅ बोललै ।
तोहें कही छेलोॅ कुछू नै छै, शाक रोॅ पत्ता देखलकै
द्रौपदी एक टक कृष्णोॅ रोॅ लीला देखी रहलोॅ छेलै ।
द्वारिकापति शाक-पात मुखोॅ मेॅ डाली रहलोॅ छेलै
श्रीकृष्ण नेॅ विश्वात्मा तृप्ति रं डकार देलकै ।
पूरे जगत केॅ ध्वायनी-डकार जोर सेॅ देलकै
दुर्वासा बड़ी उमंगोॅ रोॅ साथ ऐलोॅ छेलै ।
सरोवर मेॅ स्नान करै लेॅ एक साथ गेलोॅ छेलै
गुरु-शिष्य रोॅ हालत बड़ी नाजुक होय गेलोॅ छेलै ।
अति भोजन रं डकार सब्भेॅ केॅ दियै लागलै
गुरु-शिष्य एक दोसरा केॅ आश्चर्य सेॅ देखेॅ लागलै ।
दुर्वासा बोललै ! अम्वरीष रोॅ घटना याद आवै लागलै
पाण्डव केॅ वनोॅ मेॅ भोजन रोॅ कमी होतै ।
हमरोॅ आना अनुचित छेलै, भोजन करना दुर्लभ होतै
होकरोॅ बनलोॅ-बनैलोॅ भोजन बेकार होय जैतै ।
नै खैला पर हुनकोॅ भोजन बेकार होय जैतै
जबेॅ गुरु केॅ बेचैनी छै तेॅ शिष्य केना केॅ टिकतै ।
गुरु-शिष्य केॅ एके रास्ता छै घिसकला पर भलाई होतै
धरा पर नै रुकलै, सीधे ब्रह्मलोक चललोॅ गेलै ।
श्याम नेॅ पाण्डव रोॅ झोपड़ी मेॅ शाक रोॅ पत्ता खैनें छेलै
कृष्ण मुस्कुरैने निकललै, धर्मराज केॅ अभिवादन करलकै ।
सहदेव केॅ आदेश देलकै दुर्वासा केॅ बोलाय लेॅ कहलकै
सहदेव कुछ देरोॅ रोॅ बाद अकेले ऐलै ।
युधिष्ठिर केॅ भीतर सेॅ बेचैनी होलोॅ छेलै
चिंता फीक्रोॅ मेॅ डूबी-उतरी रहलोॅ छेलै ।
दुर्वासा रोॅ स्वभाव जगत में विख्यात छेलै
केकरोॅ भोजन बनाय लेॅ कहै छेलै, आरोॅ चली दै छेलै ।
कोय दिन या रातोॅ मेॅ अचानक आभी जाय छेलै
भोजन नै मिलला पर शाप दै मेॅ कोताही नै करै छेलै ।
आबेॅ हुनी यहाँ झाँकै वाला नै छेलै
दुष्ट दुयोधन रोॅ कहिला पर यहाँ ऐलोॅ छेलै ।
श्रीकृष्ण ! पाण्डव रोॅ परम रक्षक बनलोॅ छेलै
पाण्डव केॅ शाप सेॅ बचाय देलकै ।
द्रौपदी ने कर्म से बचाय लेलकै
तबेॅ द्वारिकाधीश चली देलकै ।