विश्व-नागरिक / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल
हवाओं ने पार कर लीं पर्वतमालाएँ
पार कर लिए महासागर
उजाले ने पार कर लिए सार अँधियारे
अँधियारे ने ढक लिया सारा ब्रह्माण्ड
कोहरा फैला है सरहदों के आर-पार
चाँदनी बरसती है देश-देशान्तरों में
नदियों ने तोड़ दी हैं सब सीमाएँ
बादलों ने लगा ली है मैराथन दौड़
जीत लिए सभी देशों के पदक
बरसते हैं जहाँ कहीं भी
कोई दुआ को है हाथ उठाए
मनुष्य तो ठिठका है
सरहद पर कँटीले तार लगा रहा है
ऊँची-ऊँची दीवार बना रहा है
बस आकाशीय उपग्रहों से
कर लेगा याद
पर खिड़की खोलकर
नहीं करेगा संवाद
सब पर रखता है नजर
कहाँ कितना जल है
कहाँ कितना दबाब, वायु का
बारिश कहाँ हुई कितनी
छोड़ता है मौसम को नापने के यंत्र
कृत्रिम रोशनी से भागता अँघेरा
रोशनी की बदलता बिजली में
सभी संसाधनों का दोहन
बस चले तो रोशनी पर भी
सरहद पार जाने पर रोक लगा दे
नदियों को भी अपनी सरहदों में घुमा दे
बादल जो आये बरसने
उसको अपनी हदों में निचुड़वा दे
लगा रहता है नियम-कानून बनाने में
सरहदों की हदों को
सुरक्षित, अभेद्य बनाने में।