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विष्णु विनय / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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संकट पेरते प्रह्लाद सुमिरन करो, धरि नरसिंह रूप भक्त को बचायो है।
जाति पति द्रौपदी श्रवन हरि ढेरि कीन्ह्यो, अंवर अँबूह लाओ अन्तहू न पायो है॥
ग्राह के ग्रसत गजराज काज महाराज, उरमँ अँकूर होत दूरही ते धायो है।
धरनी पुकार वार वार काँध रखवार, मेरि वार दीनवन्धु वार कहाँ लायो है॥35॥