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विसंगति / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
मेरी घड़ी में सिर्फ दिन बजते हैं
मैं हर दिन के साथ लम्बाकार हो जाता हूं
और धुआं खाकर
बसों के शोर में खो जाता हूं
1969