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विसर्जन / श्याम किशोर
Kavita Kosh से
अभी-अभी बरस कर
रुका था बादल
कि फिर बरसने लगा ।
बरसते-बरसते फिर रुक गया बादल
फिर कई बार रुका
कई बार बरसा
आख़िरी बार तब तक बरसता रहा
जब तक कि
बूंद-बूंद
बिखर नहीं गया बादल ।