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विसवास : तीन / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़
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विसवास रै ताण ई
लोगड़ा चढै
रेलगाड़ी
मोटर अर चिलगाड़ी
थकां डर
कै कदै ई घट सकै
अणखावणों दुरघट।
विसवास री साख ई
छोडै घर
जावै घर
जावै आंतरा
कटै जातरा
घर सूं दूर
काळजै में बांध
भूंडी अणचींत
बताओ
कठै है विसवास
विसवास री ओट
बिगसै
कितरो अणविसवास
थूं म्हारो है
म्हूं थारो हूं
दोन्यां नै है विसवास
पण है कांई
आपां रै मनां
पूरो विसवास ?