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विस्फोट /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
कभी-कभी
सरपट भागते अनगिनत पैर
अचानक रुक जाते हैं ।
धूल भरे गलियारों में
अलग-अलग साँचे ढलना
बन्द हो जाते हैं ।
टकरा कर बोझीले कोहरे की दीवार से
हाथ-पैर अपंग हो जाते हैं।
तभी कहीं होता है
विस्फोट,
जाग उठते हैं करोड़ों लोग
गहरी नींद से।
रुकी हवा फिर से
चलने लग जाती है।