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विस्मय / उमा अर्पिता

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प्यार की
छोटी-सी बस्ती में
रहने वाले/तुम--
एक दिन/अनजाने ही रूठ कर
एक अजनबी शहर में
जा बसे, और
उसके चारों ओर
मजबूत दीवारों का/ऊँचा घेरा
खड़ा कर लिया, जिसके अंदर
मेरा प्रवेश/वर्जित कर दिया गया,
उसमें--प्रवेश पाने का
मेरा हर प्रयत्न/असफल रहा, और
हर बार मेरी प्रतीक्षा
तुम्हारे शहर की दीवारों से
सिर टकरा-टकरा कर
घायल हो/होकर लौटती रही!
मेरे रक्त-रंजित हाथ
मुझसे ही लिपट कर
रोते रहे/बिलखते रहे
पर कब तक...!
आखिर कब तक-!!
इससे पहले कि मेरी प्रतीक्षा
लहु-लुहान हो/दम तोड़ देती/मैंने
तुम्हारा निर्दयी शहर
छोड़ने का निर्णय ले लिया
और आज जब मैं/तुम्हारे लिए
तुमसे ही दूर/बहुत दूर
जाने लगी, तो
न जाने कौन-सी पुकार
तुम्हें, मुझ तक खींच लाई, कि
आज तुम स्वयं ही
झूठे अभिामन के दायरों को तोड़
मुझ मानिनी को मनाने चले आये।