भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विस्मरण / बिली कॉलिन्स / यादवेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबसे पहले लेखक का नाम गुम होता है
और लगता है जैसे डूबते-डूबते उसने समझाया हो
किताब के नाम को .... विषय को ... और दारुण अन्त को भी
कि चलते चले आओ पदचिह्न ढूँढ़ते मेरे पीछे-पीछे
और पल भर भी नहीं लगता पूरे उपन्यास को विस्मृत होते
जैसे पढ़ना तो बहुत दूर, सुना भी न हो उसका नाम कभी इस जीवन में

जो जो भी आप याद करने का यत्न करते हैं
दिमाग पर भरपूर ज़ोर डाल के
सब का सब बच कर दूर छिटक जाता है आपकी ज़ुबान से
या कि आपकी तिल्ली के किसी अँधेरे कोने में
रुक-रुक कर जुगनू सरीखा टिमटिमाता रहता है....

कोई अचरज नहीं कि आधी रात अचानक आपकी नींद उचट जाए
और आप किताबों में ढूँढ़ने लगें किसी ख़ास लड़ाई की तारीख़
कोई अचरज नहीं कि आपको अनमना देख
खिड़की से बाहर दिख रहा चन्द्रमा
आँख बचा कर भाग जाए उस प्रेम कविता से भी बाहर
जो आजीवन आपके मन में बोलती बतियाती रही है....

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र