विस्मृति / अर्चना कुमारी
विस्मृति
कहां होती है
किसी बात की
हां स्मृतियों का स्थायित्व
तय करता है
विस्मृति की उम्र
मस्तिष्क के एक हिस्से में
कुछ दर्ज रह जाता है कहानी जैसा
रह जाते हैं मन पर घाव के निशान
विस्मृतियां जानती हैं
कि इनसे मुक्त होना ही
स्मृतियों के पक्ष में न्याय है
कोई कानून नहीं होता
न ही अध्यादेश
कि गये हुए समय को पीसकर चबाया जाए
कि आए हुए समय के सवाल सामयिक होंगे
उंगलियां पूछेंगी आंखों की लाली लेकर
बता कल कहां था और कल कहां होगा
सुरक्षित भविष्य के साये तले
कातर स्मृतियां पनाह मांगेगीं
समय मांगेगा अल्जाइमर
मन कोमा
देह मृत्यु
प्रश्नों से चिरप्रसवा मैं
कभी कोई उत्तर नहीं जन्मूंगी
पालने के खालीपन को
स्मृतियां सहेजेंगी
विस्मृतियां झूलाएंगी
आजन्म अप्रसवित स्मृति को
शब्दों से खेलने के कौशल में कुशल मैं
हृदय को खिलौना मानकर
प्रेम का झुनझुना थमाकर
जिस देश जाऊंगी
वहां देह और मन की नयी परिभाषा होगी
तुम नहीं समझोगे।