वीरगाथा / आन्द्रेय वाज़्नेसेंस्की
मैं पहुँच जाऊँगा आज
कहूँगा सहज भाव से :
खत्म हो गई है बीसवीं सदी।
जला डालूँगा अपनी तमाम किताबें
समेट डालूँगा तुम्हारी सभी चीजें
कहूँगा बिना ताम-झाम के
अब हम स्वतंत्र हैं
खुल जायेंगे पानी के नल
जलने लगेंगे तारे,
झूमने लगोगे तुम नृत्य में
फूलने लगेंगी मछलियों की तरह श्वासेंद्रियाँ।
अंधकार में प्रकट होगी
घाव के निशान-सी
तुम्हारे शरीर पर पेटी
मुझे दिखोगे तुम दो हिस्सों में -
एक हिस्सा इस सदी में
दूसरा दूसरी सदी में।
मेहमान भी दिखेंगे
सब कटे हुए दो हिस्सों में।
हर हिस्सा अपनी-अपनी सदी में।
हम सब जी रहे हैं
कमर तक इस सदी में
कमर के नीचे दूसरे आयाम में।
'रहा क्या इस सदी का अस्तित्व कभी?'
हँसते हुए तुम देते हो जवाब।
डिस्को के समकालीन
फर्श पर देते हैं दस्तक हमें
और पुन- दिलाते हैं याद :
अमर हैं बीसवीं सदी।