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वीर कुँवर के जन्म दिवस पर / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’

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के ना जाने वीर कुँवर के जेकर अमर कहानी रे?
अनकर दाब सहल ना कबहूँ जेकर तेज रवानी रे।
एक बार धरती भर में चमकल जेकर तलवार रहे;
एक बार जेकर नभ भर में गूँजत, जय-जयकार रहे;
अंगरेजन के शान-मान जेकरा आगे रे टूट चुकल;
एक बार जेकरा मुँह से निकलत, केवल ललकार रहे;
भर जिनिगी जे राख चुकल बा भारत माँ के पानी रे।
जेकर मोंछ कबहुओं पट ना भइल, सदा लहराइल रे;
जेकर शान विपद पड़लो पर तनिको ना मुरझाइल रे;
जनम-भूमि के इज्जत खातिर जे सब कुछ माटी समझल;
नाहीं भइल उदास कबहुओं, जे हरदम मुस्काइल रे;
अइसन वीर लड़ाका के दुनिया में के ना जानी रे?
शहाबाद के धरती धन्य भइल अइसन योथा पाके;
भइल धन्य ई आसमान अइसन योधा के जय गाके;
पाके वीर कुँवर अइसन बेटा के जननी धन्य भइल;
धन्य भइल सागर जेकर गौरव से लहरा-लहरा के;
अपना देश-जाति के हरदम जे रहले अभिमानी रे।
बाड़े वीर कुँवर ना लेकिन उनकर बाटे नाम अमर;
आदर से बा लेत नाम उनकर भारत के सब घर-घर;
बा इतिहास गवाह कि भारत खातिर ऊ का-का कइलन;
लेलन लोहा अंगरेजन से जिनगी के बाजी धर-धर;
पेट भरत नइखे अब उनकर कतनो नाम बखानी रे।
जबले धरती रही अउर ई आसमान ऊपर छाई;
जबले सागर के छाती पर लहर मचल के लहराई;
जबले झाड़-झँखाड़ चूम के बही अरे झकझोर पवन;
तब ले वीर कुँवर के पावन नाम न तनिको मिट पाई;
चमकी नाम सदा दुनिया में जइसे सोना-चानी रे।
के ना जाने वीर कुँवर के जेकर अमर कहानी रे?