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वीर विवेक का मंत्र / प्रेम प्रगास / धरनीदास

चौपाइ्र:-

वीर विवेक महथ नृप पाहा। कहो जगाय सुनो नर नाहा॥
अव शोचत नहि वनै भुवारा। होइहै जो करिहै कर्त्तारा॥
हमरे कहे करो कछु काजू। यज्ञ विधंस होत है आजू॥
दे साखी वर करिय विवाहा। का जोगी भय कारन नाहा॥
जो समरथ गौरी शिव ह्वै हैं, जाके प्रभु प्रसन्न सोइ पैहै॥

विश्राम:-

जय जयमाला एक राखिये, जग देखत दर्वार।
सवै करै पर दच्छिना, एक जना एक रवार॥185॥

चौपाई:-

करत प्रणाम माल गिरि परई। निश्चय कुंअरि ताहि वर वरई॥
सुनि के ध्यानदेव मनमाना। कह्यो वचन सुनु महथ सुजाना॥
जावहु महथ जहां सब राऊ। वचन विचारी कहो सतिभाऊ॥
जो तुम मिलि के यज्ञ नशावहु। तौ हमके कहि प्रगट सुनावहु॥
यज्ञ विनाश करो केहि काजा। विधि परवश अस कीन्हो राजा॥

विश्राम:-

तुम सब मिलि हठ कीन्हेऊ, योगिहिं कुंअरिन देहु।
विधि वैरी जग नहि कोई, काहे अपयश लेहु॥186॥