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वृन्दावन बसबाक प्रस्ताव / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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गोकुल बसव विपत्ति वरब थिक, मन हो जाइ पराय
कतहु चलिय अनतय, नत भय कहि रहल सबहु गोहराय
नन्दहु कहलनि, तथ्य कथ्य अछि, स्थिति अछि तेहन भेल
धिया-पुता ओ जनी-जाति पुनि धेनु-धनहुकेर लेल
कंसराजकेर गतिविधि तेहने, राजपुरुष दुर्दान्त
लूटि खसोटि प्रजाकेँ करइत रहइछ सतत अशान्त
सुनइत छी क्यौ कहि देने अछि ब्रजमे जनमि महान
क्यौ बलवान पुरुष वधकर्त्ता होयतह, बुझह प्रमान
तेँ मारय चाहय शिशु मात्रहिकेँ सैनिक उकसाय
गोकुल मुख्य बनल अछि लक्ष्य, उपद्रव तेँ अधिकाय
तेँ किछु दिन धरि तेजि गाम-घर गोकुलसँ बहराय
जाय बसी कहुँ पासहि जतय सुपास वात सोझराय
कहल सबहिँ, अछि अनतिदूर वृन्दावन अतिसुखदाय
यमुना जल सिंचित संचित तरु-लता फूल-फलदाय
गोचर भूमि प्रशस्त ओतय अछि गोबर्धन गिरिराय
जल निर्मल, थल समतल, विस्तृत चरचाँचर जलदाय
बाड़ी झाडी फूलक क्यारी छाया-तरु बिसराम
एहन मनोरम वृन्दा धाम वसब रसमय बनगाम
हम गोपाल गाय पालब तत, शिशु गन घुमत निचिन्त
अन-धन व्यंजन शाक-पाक रंधन हित इंधनवंत
सभ प्रसन्न मन उपटि बसब तन तृणपर्णक अछि ढेरि
कुटी बनायब, गाय चरायब, गायब वंशी टेरि
कयल समर्थन प्रस्तावक, नहि कोनहु घमर्थन भेल
अकट-विकट सभ शकट समेटि गोकुलक जन चलि देल