भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वेंटिलेशन / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
चिड़ियाँ बतिया रही थी
कि हमारे हँसी-खुशी के सुकोमल दिन
ख़त्म हो चले है
जी घबरा रहा है
इस सदी को देख कर
इस बीच हमारे कई परिजनों ने
धरती से अपना रिश्ता
तोड़ दिया है
हमारे लिए यह धरती
अब नहीं रह गयी निरापद
चिड़िया बतिया रही थी
बगैर किसी तामझाम के
बगैर किसी घोषणा-पत्र के
जीने की इस उम्मीद के साथ
कि बड़ी-बड़ी इमारतों में भी
रखी जाए
कम से कम
एक वेंटिलेशन !